कुछ रातें इतनी लंबी क्यों होती हैं?
अब जो मैं काली रात पर कुछ लिखना चाहती हूं तो मुझे याद आता है कि ये सावन की अमासी रात है। अमावस की रातें सबसे काली होती हैं, इसलिए दिवाली भी मनती है, एक अमावस को गुलजार करने। लेकिन आज सावन की अमावस है, और रात काफी काली है, ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ दिख नहीं रहा, जो नए फ्लाईओवर के ऊपर लाइटें लगी हैं उससे मेरे कमरे रौशनी आती है थोड़ी सी, मैं देख पा रही हूं कि मेरी ली हुई तस्वीरें जो मैने दीवार पर लगाई है, वो साफ दिख तो नहीं रहीं लेकिन उन्हें जैसे मैने चिपकाया था वो भी अंधेरे और हल्के उजाले में काफी सुंदर दिखता है। ये लाइट जो आम के पेड़ से होते हुए मेरे कमरे में आ रही है खिड़की के फ्रेम और आम की टहनी और पत्तों की छाप बनाते हुए, वो अपने आप में एक खूबसूरत चित्र है।
लेकिन इतनी खूबसूरती और इतनी सी रौशनी के बावजूद मुझे अपना अंधेरा साफ-साफ दिख रहा है। दिखता है कि मैं कितनी नाकामयाब निकली, नौकरी है, जिसका ठिकाना नहीं है, किराए का घर है जिसका भी ठिकाना नहीं है, मेरे पास असल में कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां मुझे लगे कि मैं यहां सुरक्षित हूं। दिन बीतते जा रहे हैं, महीने, हफ्ते और साल भी, बस ये रात नहीं बीत रही है। ये रात मुझे मेरी नींद से मिलने नहीं दे रही, मुझे सपने देखने नहीं दे रही, अपने अंधेरे में ये रात मुझे मेरी सच्चाइयां दिखला रही है, गिनवा रही है।
मैं अपने पैर पर खड़े होने में नाकाम रह रही हूं और अपने प्रेम में भी… मुझे अचानक एक दिन एहसास हुआ कि मैं कभी कुछ थी ही नहीं, और न रहूं तो वो ये कभी नहीं कहेगा कि मैं उसके अतीत का हिस्सा थी, और अब … मैं उसका बीता हुआ कल भी नहीं हूं। मैं इस सच के साथ नहीं लड़ सकी और उसके लिए मैने अपने कुछ नहीं नहीं हो पाने को स्वीकारा, लेकिन यह स्वीकारना रह रह कर मुझे चीरता-फाड़ता रहता है।
मैने लड़कियों को सही उम्र में ब्याह देने की परंपरा से लड़ना चाहा, लड़ भी रही हूं… शायद, क्योंकि मेरी सही उम्र मैं ही निश्चित करूंगी, और इससे लड़ने और बचने का उपाय मैने फिल्म मेकिंग चुना, और अपनी पहली ही फिल्म मैं पिछले डेढ़ साल से नहीं बना सकी हूं, लेकिन मैं इसे बनाना चाहती हूं और पूरी जद्दोजेहद से लगी भी रहती हूं। मुझे लगता है लड़की की कामयाबी ही लोगों को उसकी बात सुनने और मानने पर मजबूर करती है, इसलिए मैं कामयाब होकर अपने लिए ये आजादी चाहती हूं। अपनी आजादी की कीमत चुका कर अपने लिए फैसले लेने का हक चाहती थी। लेकिन मैं उस बीते कल के इंसान के लिए इतनी आम, तुच्छ और अस्तित्वहीन थी कि मेरे मां बाप के फैसला लेने से भी पहले ही उसने लोगों को यह कहना शुरू कर दिया कि अगले साल मेरी शादी होने वाली है। मेरे पिछले एक दशक की पूरी मेहनत पर एक बाल्टी पानी है ये, या एक ड्रम भी शायद। इस बात पर जरूर उसे एक सुकून की सांस आएगी…
उसकी बातों से मैं अपने लिए लड़ना तो नहीं छोड़ दूंगी लेकिन उसने मुझे एक और बार बहुत बुरी तरह हरा दिया। इतना ज्यादा हार चुकी हूं और हारती रहती हूं कि खुद से भरोसा खत्म होता जा रहा है।
मर्द कभी फेमिनिस्ट क्यों नहीं हो सकते? सिर्फ इसका मुखौटा पहन के क्यों घूमते हैं? अपनी इनसिक्योरिटी के कारण ये लोग दूसरों को कम समझ कर खुद के कारनामों को क्यों वैलिडेट करते रहते हैं? और इससे भी बड़ी बात मुझे किसी ऐसे ही कायर से इतना प्रेम क्यों होना चाहिए था?
खैर मैं यत्र तत्र सर्वत्र अब भी उसे ही हर जगह घुसा रही हूं ये भी मेरी नाकामयाबी में ही गिना जाना चाहिए।
मैने अपने लिए वक्त मांगने की सोची कि एक कामयाब लड़की अपने लिए फैसले लेने की आजादी के साथ अपना एक साथी खुद से चुनूंगी और सब इस बात को इसलिए मानेंगे क्योंकि मैं (एक कामयाब लड़की) ऐसा कह रही हूं। लेकिन मैं किसे चुनूंगी? ये सब बीतने के बाद मुझे नहीं लगता इस काबिल भी मैं हूं… जिसे मैने टूट कर अपनी हड्डियों तक से प्रेम करना चाहा मुझे पता नहीं क्यों इसका जवाब नहीं मिल पाएगा कि वो मुझसे या किसी से भी प्रेम करने में क्यों अक्षम है, और फिर किसी की जिंदगी में आता ही क्यों है, ऐसे ही मर्दों के बाजार में मैं अपना साथी कैसे चुनूंगी, अपने परिवार को मनाकर, खुद को कामयाब बना कर मैं यही तय कर पाने के काबिल नहीं बन सकूंगी कि कौन मेरा साथी हो सकता है… फिर ये सब क्यों है?
मुझे क्या करना चाहिए मुझे नहीं पता.. शायद सो जाना चाहिए, रात के दो बजने वाले हैं, वरना कल विजिट पे फूले हुए मुंह के साथ गांव गांव घूमना पड़ेगा, इसके मुझे 500 रुपए ज्यादा मिल जाएंगे, शायद मैं इसी काबिल हूं।



